Sharjeel Imam ने कहा उमर खालिद से कोई रिश्ता नहीं, अदालत से ‘दया’ की गुहार: केस में नया मोड़

Sharjeel Imam ने कहा उमर खालिद से कोई रिश्ता नहीं, अदालत से ‘दया’ की गुहार: केस में नया मोड़

केस में नया मोड़: शरजील इमाम का ‘दया’ मांगने और उमर खालिद से दूरी का दावा

करीब पांच साल से जेल में बंद Sharjeel Imam ने—मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक—अदालत में बयान दिया है कि उनका Umar Khalid से कोई संबंध नहीं रहा और उन्होंने ‘दया’ यानी माफी/पार्डन की मांग की है। यह दावा दिल्ली दंगों की ‘बड़ी साजिश’ (FIR 59/2020) वाले UAPA केस को नई दिशा दे सकता है। फिलहाल आवेदन की आधिकारिक प्रति सार्वजनिक नहीं है और अदालत की औपचारिक पुष्टि का इंतजार है, लेकिन अगर यह सही है तो ट्रायल की धुरी बदल सकती है।

कौन हैं शरजील इमाम? जेएनयू के रिसर्च स्कॉलर रहे शरजील को जनवरी 2020 में उन भाषणों के बाद गिरफ्तार किया गया था, जो नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के दौरान दिए गए थे। उन पर शुरू में राजद्रोह जैसी धाराएं लगीं, बाद में दिल्ली पुलिस की ‘लarger conspiracy’ FIR में UAPA भी लगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में राजद्रोह धारा 124A पर रोक के बाद कई केस ठहरे, लेकिन UAPA के तहत शरजील अब भी हिरासत में हैं।

उमर खालिद का ट्रैक रिकॉर्ड अलग है, पर केस वही—दिल्ली दंगा साजिश केस। जेएनयू के पूर्व छात्र नेता खालिद सितंबर 2020 से जेल में हैं। ट्रायल कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक उनकी नियमित जमानत याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं। कभी-कभी निजी कारणों पर सीमित अंतरिम राहत मिली, मगर स्थायी जमानत नहीं। उनका पक्ष लगातार यही रहा कि उन्होंने हिंसा भड़काने की साजिश नहीं रची; वे इसे शांतिपूर्ण विरोध का आपराधिकरण मानते हैं।

FIR 59/2020 में दिल्ली पुलिस का आरोप है कि फरवरी 2020 की हिंसा कोई आकस्मिक घटना नहीं, बल्कि संगठित साजिश का नतीजा थी। आरोपपत्रों में बैठकों, संदेशों और अलग-अलग समूहों के समन्वय की बात कही गई है; बचाव पक्ष इसे “विरोध की राजनीति” को अपराध बताने की कोशिश करार देता है। इस केस में आरोपियों की संख्या बड़ी है और दस्तावेज़ी साक्ष्य भारी-भरकम।

अब सवाल—‘दया’ की मांग का अर्थ क्या है? भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 306/307 के तहत कोई सह-आरोपी अदालत से ‘पार्डन’ मांगकर अप्रूवर बन सकता है। शर्त यह कि वह पूरी सच्चाई बताए, पड़ताल में सहयोग करे और खुद मुख्य साज़िशकर्ता न हो। अदालत और अभियोजन, दोनों की सहमति अहम होती है। अगर बाद में बयान झूठा साबित हुआ, तो माफी वापस ली जा सकती है और गवाही के आधार पर उसे ही सज़ा भी हो सकती है।

अगर शरजील का आवेदन आगे बढ़ता है, तो सामान्य प्रक्रिया यह रहती है: अदालत अभियोजन से जवाब मंगवाती है, फिर तय करती है कि ‘पार्डन’ दे या नहीं। ‘हाँ’ हुआ तो अदालत उसका बयान विस्तार से दर्ज करती है और वह गवाह बनकर चश्मदीद/अंदरूनी जानकारी रखने वाले व्यक्ति की तरह खड़ा होता है। ‘ना’ हुआ तो वह फिर से आरोपी की कुर्सी पर वापस—ट्रायल पूर्ववत चलता है। इस रास्ते पर अदालत अक्सर यह भी देखती है कि कौन-सा आरोपी ‘कम भूमिका’ वाला है और उसके बयान से सच में केस की तह तक पहुंच बनती है या नहीं।

यह सब उस पृष्ठभूमि में हो रहा है जब UAPA के मामलों में जमानत की कसौटी आम आपराधिक कानून से सख्त है। धारा 43D(5) के तहत अगर कोर्ट को चार्जशीट और दस्तावेज़ों में ‘प्राइमा फेसि’ मामला दिखता है, तो जमानत मुश्किल हो जाती है। इसी वजह से ऐसे केस सालों तक चलते हैं और आरोपी लंबे समय तक हिरासत में रहते हैं।

कानूनी हलकों में भी यह बहस गरम है कि किसी ‘लarger conspiracy’ केस में अप्रूवर बनने की पेशकश को कैसे परखा जाए। एक तरफ तर्क है कि अंदर से मिली जानकारी सच तक पहुंचाती है; दूसरी तरफ आशंका रहती है कि दबाव या राहत पाने की चाह बयान को प्रभावित कर सकती है। अदालतें इसलिए इस तरह के आवेदन को बेहद सावधानी से परखती हैं—बयान की निरंतरता, पहले के स्टेटमेंट्स से तुलना, और घटनाक्रम की स्वतंत्र पुष्टि जैसे मानकों पर।

सियासी बहस स्वाभाविक है। कुछ लोग इसे जांच के दावों की पुष्टि की दिशा में कदम मानेंगे, तो कुछ इसे लंबी हिरासत के दबाव में लिया फैसला बताएंगे। पर अदालत में मायने रखेगा सिर्फ रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य, जांच एजेंसी की आपत्तियां और गवाह/अभियुक्त के बयानों की संगति।

समयरेखा और आगे का रास्ता

  • दिसंबर 2019–जनवरी 2020: CAA विरोध प्रदर्शन तेज होते हैं; भाषणों और चक्का जाम की अपील पर विवाद।
  • फरवरी 2020: उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा—कई लोगों की मौत, सैकड़ों घायल।
  • जनवरी–सितंबर 2020: शरजील इमाम और फिर उमर खालिद की गिरफ्तारी; ‘लarger conspiracy’ वाली FIR 59/2020 में UAPA।
  • 2022: सुप्रीम कोर्ट ने 124A (राजद्रोह) पर रोक लगाई; पर UAPA केस जारी।

अगले कदम क्या हो सकते हैं? अदालत पहले अभियोजन की राय लेगी। संभव है कि शरजील का प्री-लिमिनरी बयान रिकॉर्ड किया जाए। इसके बाद तय होगा कि ‘पार्डन’ दिया जाए या नहीं। अगर मंजूरी मिलती है, तो ट्रायल का फोकस बदल सकता है—बचाव पक्ष जिरह में उनके पुराने और नए बयानों के फर्क पर हमला करेगा, जबकि अभियोजन उनके इनसाइड अकाउंट को केंद्रीय धुरी बनाना चाहेगा।

फिलहाल निश्चित इतना ही है कि यह केस कानून, राजनीति और नागरिक स्वतंत्रता—तीनों के चौराहे पर खड़ा है। अदालत की अगली सुनवाई इस ‘नए मोड़’ की गंभीरता तय करेगी। जब तक कोई आधिकारिक ऑर्डर न आए, यह पूरा मामला दावों-प्रतिदावों और अदालत की कसौटी के बीच झूलता रहेगा।